प्रिंस अलेमाएहु: एबिसिनिया का खोया हुआ वारिस अफ्रीका के मध्य में, राजकुमार अलेमायेहु के जीवन के माध्यम से राजशाही, त्रासदी और औपनिवेशिक साज़िश की एक कहानी सामने आती है। 1861 में जन्मे, वह सम्राट टेवोड्रोस द्वितीय और रानी टेरुनेश के पुत्र थे, ये दो शख्सियतें थीं जिनका जीवन एबिसिनिया की नियति के साथ जुड़ा हुआ था। यह युवा राजकुमार, जो अंततः इथियोपिया के लचीलेपन और प्रतिरोध का प्रतीक बन गया, को न केवल अपने पिता का नाम विरासत में मिला, बल्कि एक एकजुट और शक्तिशाली इथियोपिया के सपने भी विरासत में मिले। रॉयल्टी की जड़ें प्रिंस अलेमायेहु की वंशावली का पता एबिसिनिया के प्राचीन सम्राटों से लगाया जा सकता है, यह वंश इतिहास की समृद्ध मिट्टी में एक विशाल वृक्ष की गहरी जड़ों की तरह डूबा हुआ है। उनके पिता, सम्राट टेवोड्रोस द्वितीय, एक दूरदर्शी नेता थे, जिनकी तुलना अक्सर सवाना के शेर से की जाती थी, जो बाहरी खतरों से अपने राज्य की रक्षा करते थे। उनकी मां, रानी तेरुनेश, एक उज्ज्वल सूरज के समान थीं, जो अपने परिवार और प्रजा को गर्मी और आराम प्रदान करती थीं। अलेमायेहु का पालन-पोषण शाही परंपराओं और एबिसिनिया
तू नित्य नये - नये रूपों से
तू नित्य नये - नये रूपों से मेरे प्राणों में आ
गंध में आ रंग में आ, शरीर में रोमांचित स्पर्श बन आ,
चित में अम्र्तमय हर्ष बन आ,
मेंरे दोनों मुग्ध मूंदे नयनो में आ ! मेरे प्राणों में नित्य
नये - नये रूपों में आ !
हें निर्मल , हें उज्जवल, हें मनोहर, आ !
हें सुंन्दर, हें स्निग्ध, हें प्रशांत, आ !
मेरे सुख - दुःख में आ, मेरे मर्म में आ, नित्य नेमतिक
कर्म में आ ! सब कर्मो की समाप्ति में आ !
नित्य नये - नये रूपों से मेरे प्राणों में आ !
: रविन्द्रनाथ ठाकुर
(गीतांजलि)
Gitanjali was originally a Bengali language poem titled Gitanjali written by Rabindranath Tagore and published in 1910. It contained only lyrics and no prose works.