तू नित्य नये - नये रूपों से
तू नित्य नये - नये रूपों से
तू नित्य नये - नये रूपों से मेरे प्राणों में आ
गंध में आ रंग में आ, शरीर में रोमांचित स्पर्श बन आ,
चित में अम्र्तमय हर्ष बन आ,
मेंरे दोनों मुग्ध मूंदे नयनो में आ ! मेरे प्राणों में नित्य
नये - नये रूपों में आ !
हें निर्मल , हें उज्जवल, हें मनोहर, आ !
हें सुंन्दर, हें स्निग्ध, हें प्रशांत, आ !
मेरे सुख - दुःख में आ, मेरे मर्म में आ, नित्य नेमतिक
कर्म में आ ! सब कर्मो की समाप्ति में आ !
नित्य नये - नये रूपों से मेरे प्राणों में आ !
: रविन्द्रनाथ ठाकुर
(गीतांजलि)
Gitanjali was originally a Bengali language poem titled Gitanjali written by Rabindranath Tagore and published in 1910. It contained only lyrics and no prose works.