रहीम के दोहे
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Rahim Khan-I-Khana |
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर
जब बननी के दिन आत हैं, बनत न लगि है देर
चाह गई चिंता गई, मनुआ बेपरवाह
जिनको कछु नहि चाहिये, वे शहन के शाह
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पढ़ जाय
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय
रहिमन विपदा ही भली, जो थोड़े दिन होय
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय
माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि
छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात
खैर, खून, खाँसी, ख़ुशी, बैर, प्रीति, मदपान
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि
बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय
एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर
खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान
देनहार कोई और है, भेजत जो दिन रैन
लोग भरम हम पर करे, तासो निचे नैन
एकहि साधै सब सधै सब साधे सब जाय
रहिमन मूलहि सीचबो फूलहि फलहि अघाय
एकहि साधै सब सधै सब साधे सब जाय
रहिमन मूलहि सीचबो फूलहि फलहि अघाय