प्रिंस अलेमाएहु: एबिसिनिया का खोया हुआ वारिस अफ्रीका के मध्य में, राजकुमार अलेमायेहु के जीवन के माध्यम से राजशाही, त्रासदी और औपनिवेशिक साज़िश की एक कहानी सामने आती है। 1861 में जन्मे, वह सम्राट टेवोड्रोस द्वितीय और रानी टेरुनेश के पुत्र थे, ये दो शख्सियतें थीं जिनका जीवन एबिसिनिया की नियति के साथ जुड़ा हुआ था। यह युवा राजकुमार, जो अंततः इथियोपिया के लचीलेपन और प्रतिरोध का प्रतीक बन गया, को न केवल अपने पिता का नाम विरासत में मिला, बल्कि एक एकजुट और शक्तिशाली इथियोपिया के सपने भी विरासत में मिले। रॉयल्टी की जड़ें प्रिंस अलेमायेहु की वंशावली का पता एबिसिनिया के प्राचीन सम्राटों से लगाया जा सकता है, यह वंश इतिहास की समृद्ध मिट्टी में एक विशाल वृक्ष की गहरी जड़ों की तरह डूबा हुआ है। उनके पिता, सम्राट टेवोड्रोस द्वितीय, एक दूरदर्शी नेता थे, जिनकी तुलना अक्सर सवाना के शेर से की जाती थी, जो बाहरी खतरों से अपने राज्य की रक्षा करते थे। उनकी मां, रानी तेरुनेश, एक उज्ज्वल सूरज के समान थीं, जो अपने परिवार और प्रजा को गर्मी और आराम प्रदान करती थीं। अलेमायेहु का पालन-पोषण शाही परंपराओं और एबिसिनिया
Khalil Gibran |
खलील जिब्रान, लेबनानी-अमेरिकी लेखक, कवि, और चित्रकार थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से दिलों को छू जाने वाले संदेश दिए। वे 20वीं सदी के महत्वपूर्ण साहित्यिक फ़िगर्स में से एक माने जाते हैं और उनकी प्रसिद्ध किताब "प्रोफेट" एक आदर्शिक काव्य रचना है जिसमें वे मानवता, प्रेम, जीवन, और समस्याओं पर अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हैं।
खलील जिब्रान का जन्म 1883 में लेबनान के गिब्रान गांव में हुआ था, और बाद में वे अमेरिका में बसे। उन्होंने अपने जीवन के दौरान कई कविताएँ, किताबें, और चित्र बनाए, जिनमें उनकी गहरी विचारधारा और सजीव भावनाएँ प्रकट होती थीं।
उनकी काव्यरचनाओं के माध्यम से, खलील जिब्रान ने सामाजिक, आध्यात्मिक, और व्यक्तिगत मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण को साझा किया और उनके शब्द हमें सोचने और समझने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे अपनी कविताओं में नई दिशाओं की ओर मानव जीवन के अनगिनत पहलुओं को छूने का प्रयास करते थे और उनकी रचनाओं का महत्व आज भी बना हुआ है।
खलील जिब्रान के कहे कुछ शब्द जो दिल को छू जाते हैं
भगवान का प्रथम विचार 'देव-दूत' बना बना और भगवान के प्रथम शब्द ने 'मानव' की आकृति पाई
समस्या से ग्रस्त पुरुष केवल एक ही वाक्य बोला उसने कहा "सिकता ( रेत बालू ) का एक कण ही मरूस्थल है ओर सम्पूर्ण मरुस्थल सिकता का एक कण है
आत्मा जो चाहती वो पा लेती है
स्वतन्त्रता के बिना जीवन ऐसा ही है जेसे आत्मा के बिना शरीर
निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी
इच्चा आधा जीवन है और उदासीनता आधी मौत
स्वतन्त्रता के बिना जीवन ऐसा ही है जेसे आत्मा के बिना शरीर
निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी
इच्चा आधा जीवन है और उदासीनता आधी मौत
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सत्य को जानना चाहिए पर उसको कहना कभी-कभी चाहिए
तुम शराब पीते हो ताकि मदहोश हो सको, ओर में इसे पीता हूँ ताकि मुझमें उस दूसरी शराब को पीने की कामना न रहे
दुसरे व्यक्ति की वास्तविकता उसमे नही है, जो कुछ वह तुम पर व्यक्त करता है, बल्कि उसमे है जो कुछ वह तुम पर व्यक्त नही कर पाता
इसलिए यदि तुम उसे जानना चाहते हो तो उसकी उन बातो को न सुनो, जिन्हें वह सुनाता है, बल्कि उन बातो को समझो, जिन्हें वह नही कहता
मै सागर के इन तटो पर फेन(झाग) और रेत के बीच सदा से घुम रहा हूँ
आने वाला ज्वार मेरे पद चिन्हो को मिटा देगा और बहने वाली हवा इस झाग को उड़ा ले जायगी
किन्तु सागर और तट सदा बने रहेगे ।
वे मुझे प्रबोधन करते हुए कहते है "तुम और तुम्हारा घर यह विश्व,अनन्त सागर के अनन्त तट पर रेत की एक कणिका (कण) मात्र है ।
वे मुझे प्रबोधन करते हुए कहते है "तुम और तुम्हारा घर यह विश्व,अनन्त सागर के अनन्त तट पर रेत की एक कणिका (कण) मात्र है ।
और अपने स्वपन में मैं उनसे कहता हुँ ''में ही वह अनन्त सागर हूँ और यह समस्त विश्व मेरे ही तट पर रेत की कणिकाएं मात्र है
प्रत्येक बीज एक कामना है
मानव कुत मर्यादाओ को दो ही मनुष्य तोड़ते है : या तो पागल या फिर अति बुद्धिशाली, वास्तव में वे दोनों ही प्रभु से सार्वधिक समीप है
बहुधा मानव अपनी आत्मा की रक्षा के नाम पर भी आत्म हत्या कर लेता है
यदि पाप और पुन्य की , की जाने वाली व्याख्या सत्य है,तो मेरा जीवन अपराधो की एक श्रंखला मात्र है
हम सभी कैदी है - कुछ बन्द काराग्रह के और कुछ उन्मुक्त्कारा के
यदि हम सब परस्पर एक दुसरे के सम्मुख अपने पापो को स्वीकार करले, तो हमे अपनी मोलिकता की कमी पर हंसी आ जाएगी
और यदि हम सब एक दुकरे के पुण्यो की और इंगित करने लगे तब भी ऐसा होगा
तुम अपने ज्ञान की सीमा में ही किसी व्यक्ति को जान सकते हो - और तुम्हारा ज्ञान कितना सिमित है ?
मानव कुत मर्यादाओ को दो ही मनुष्य तोड़ते है : या तो पागल या फिर अति बुद्धिशाली, वास्तव में वे दोनों ही प्रभु से सार्वधिक समीप है
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बहुधा मानव अपनी आत्मा की रक्षा के नाम पर भी आत्म हत्या कर लेता है
यदि पाप और पुन्य की , की जाने वाली व्याख्या सत्य है,तो मेरा जीवन अपराधो की एक श्रंखला मात्र है
हम सभी कैदी है - कुछ बन्द काराग्रह के और कुछ उन्मुक्त्कारा के
यदि हम सब परस्पर एक दुसरे के सम्मुख अपने पापो को स्वीकार करले, तो हमे अपनी मोलिकता की कमी पर हंसी आ जाएगी
और यदि हम सब एक दुकरे के पुण्यो की और इंगित करने लगे तब भी ऐसा होगा
तुम अपने ज्ञान की सीमा में ही किसी व्यक्ति को जान सकते हो - और तुम्हारा ज्ञान कितना सिमित है ?