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प्रिंस अलेमाएहु: एबिसिनिया का खोया हुआ वारिस अफ्रीका के मध्य में, राजकुमार अलेमायेहु के जीवन के माध्यम से राजशाही, त्रासदी और औपनिवेशिक साज़िश की एक कहानी सामने आती है। 1861 में जन्मे, वह सम्राट टेवोड्रोस द्वितीय और रानी टेरुनेश के पुत्र थे, ये दो शख्सियतें थीं जिनका जीवन एबिसिनिया की नियति के साथ जुड़ा हुआ था। यह युवा राजकुमार, जो अंततः इथियोपिया के लचीलेपन और प्रतिरोध का प्रतीक बन गया, को न केवल अपने पिता का नाम विरासत में मिला, बल्कि एक एकजुट और शक्तिशाली इथियोपिया के सपने भी विरासत में मिले। रॉयल्टी की जड़ें प्रिंस अलेमायेहु की वंशावली का पता एबिसिनिया के प्राचीन सम्राटों से लगाया जा सकता है, यह वंश इतिहास की समृद्ध मिट्टी में एक विशाल वृक्ष की गहरी जड़ों की तरह डूबा हुआ है। उनके पिता, सम्राट टेवोड्रोस द्वितीय, एक दूरदर्शी नेता थे, जिनकी तुलना अक्सर सवाना के शेर से की जाती थी, जो बाहरी खतरों से अपने राज्य की रक्षा करते थे। उनकी मां, रानी तेरुनेश, एक उज्ज्वल सूरज के समान थीं, जो अपने परिवार और प्रजा को गर्मी और आराम प्रदान करती थीं। अलेमायेहु का पालन-पोषण शाही परंपराओं और एबिसिनिया

बुल्ले शाह महान सूफी संत

सैयद अब्दुल्ला शाह कादरी (1680-1757), जिन्हें बुल्ले शाह, बड़े ही महान सूफी संत थे। उन्होंने अपने जीवन में भगवान के प्रति अपनी अद्वितीय भक्ति और समर्पण का परिचय दिया। उनकी भक्ति और संदेश आज भी हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं और उनकी कविताएँ और बोल अब भी हमें आदर्श और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। बुल्ले शाह का जन्म 1680 ईसा पूर्व को पंजाब के कसूर जिले में हुआ था और उनका जीवन पंजाब क्षेत्र में बीता। उन्हें व्यापक रूप से "पंजाबी ज्ञान के पिता" के रूप में माना जाता है।   उन्होंने आपसे तात्त्विक और धार्मिक चरित्र का विकास किया और अपने काव्यों में भगवान के प्रति अपनी अद्वितीय प्रेम का अभिव्यक्ति किया। उनकी कविताएँ और बोल जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करने के लिए हमें प्रोत्साहित करते हैं, और वे एक ऐसी आदर्श जीवन जीने का संदेश देते हैं जिसमें धार्मिकता, प्यार, और सच्चाई के मूल मूल्य होते हैं। वह एक रहस्यवादी कवि थे और वह एक "क्रांतिकारी" कवि थे जिन्होंने मजबूत सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक संस्थानों के खिलाफ आवाज उठाई; नतीजतन, कई प्रसिद्ध समाजवादी और अधिकार कार्यकर्ताओं  में

तू नित्य नये - नये रूपों से

तू नित्य नये - नये  रूपों से तू नित्य नये - नये  रूपों से मेरे प्राणों में आ  गंध में आ रंग में आ, शरीर में रोमांचित स्पर्श बन आ, चित में अम्र्तमय हर्ष बन आ, मेंरे दोनों मुग्ध मूंदे नयनो में आ ! मेरे प्राणों में नित्य  नये - नये रूपों में आ ! हें निर्मल , हें उज्जवल, हें मनोहर, आ ! हें सुंन्दर, हें  स्निग्ध, हें प्रशांत, आ ! मेरे सुख - दुःख में आ, मेरे मर्म में आ, नित्य नेमतिक  कर्म में आ !  सब कर्मो की समाप्ति में आ !  नित्य नये - नये रूपों से मेरे प्राणों में आ !                                                                          :  रविन्द्रनाथ ठाकुर                                                                      (गीतांजलि)   Gitanjali was originally a Bengali language poem titled Gitanjali written by Rabindranath Tagore and published in 1910. It contained only lyrics and no prose works.    

मेरी प्रार्थना

जय माता दी हे माँ  विपत्तियों से रक्षा कर यह मेरी प्रार्थना नहीं मैं विपत्तियों से भयभीत न होऊं अपने दु:ख से व्यथित चित को सांत्वना देने की भिक्षा नहीं मांगता मुझे ऐसी शक्ति देना मैं दु:खों पर विजय पाऊँ यदि सहायता न जुटे तो भी मेरा बल न टूटे संसार से हानि ही मिले,केवल वंचना ही पाऊँ तो भी मेरा मन उसे क्षति न माने मेरा त्रास कर यह मेरी प्रार्थना नहीं मेरी तैरने की शक्ति बनी रहें मेरा भार हल्का करके मुझे सांत्वना न दे यह भर वहन करके चलता रहूँ सुख भरे क्षणों में नतमस्तक में तेरा मुख पहचान पाऊँ किन्तु दुख भरी रातों में भी जब सारी दुनिया मेरी वंचना करे तब भी मैं तेरे प्रति शंकित न होऊँ

आरती कुंजबिहारी की

आरती कुंजबिहारी की आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला । श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला । गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली । लटन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक; ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥ आरती कुंजबिहारी की.... श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की….   कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं । गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मिरदंग, ग्वालिन संग; अतुल रति गोप कुमारी की ॥ आरती कुंजबिहारी की.... श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की….   जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा । स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच; चरन छवि श्रीबनवारी की ॥ आरती कुंजबिहारी की.... श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की….   चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू  चहूँ  दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद; टेर सुन दीन भिखारी की ॥ आरती कुंजबिहारी की.... आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

आरती ओम जय जगदीश हरे

आरती श्री भगवान विष्णु जी की ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे | भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे, ॐ जय जगदीश हरे .. जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का, सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का, ॐ जय जगदीश हरे .. मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी, तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ॐ जय जगदीश हरे … तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी, स्वामी तुम अन्तर्यामी, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी, ॐ जय जगदीश हरे .. तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, स्वामी तुम पालनकर्ता, मैं मूरख फलकामी मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता, ॐ जय जगदीश हरे .. तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, स्वामी सबके प्राणपति, किस विधि मिलूं दयामय, किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति, ॐ जय जगदीश हरे.. दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, तुम ठाकुर मेरे, स्वामी तुम ठाकुर मेरे, अपने हाथ उठाओ, अपने शरण लगाओ, द्वार पड़ा तेरे, ॐ जय जगदीश हरे.. विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, स्वमी पाप हरो देवा, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा, ॐ जय जगदीश हरे..तन

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Sant Kabir Das

संत कबीर दास के दोहे Indian mystic poet and saint Kabirdas, also known as Kabir, lived in the 15th century. He is the greatest poet of the Nirguna branch of the Gyanmargi subbranch of Bhakti literature in Hindi. His songs had a significant impact on the Bhakti movement in the Hindi-speaking world. His works have been incorporated into the Sikhs' Adi Granth. संत कबीर दास  के दोहे केस कहा बिगडिया, जे मुंडे सौ बार   मन को काहे न मूंडिये, जा में विशे विकार Kes kaha bigadiya , J munde saau baar  Maan ko kahe na mundiye , Ja mai vishay vikaar केस = बाल , मुंडे = सर के सारे बाल साफ करना  जा में विशे विकार= जिस में अच्छे विचार न हो  माटी कहे कुम्हार से तू क्या रौंदे मोय  एक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदूगी तोय  Maati khe kumhaar se tu kya ronde moye Ek din aisa aae ga main rondu gyi tohe  साईं इतना दीजिए जा मे कुटुम समाय मैं भी भूखा न रहूं साधु ना भूखा जाय Sai itna dijiye ja mai kutumb samaye Main bhi bookha na rahun sadhu na bukha jae बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजू

Mahatma Gandhi Quotes In Hindi महात्मा गांधी के अनमोल विचार

महात्मा गांधी के अनमोल विचार  तभी बोलो जब वो मौन से बेहतर हो अपनी भूलो को स्वीकारना उस झाड़ू के समान हे जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले दे अधिक स्वछ कर देती हे ।                                                                                                                     - महात्मा गांधी  अपने सास - ससुर के घर या  अपनी बहन के घर मैं पानी तक न पीता था। वे छिप कर  पिलाने को तैयार होते पर जो काम खुले तौर से न किया जा सके, उसे छिपकर करने के लिए मेरा मन ही तैयार न होता था।                                                                                       - महात्मा गांधी  (सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा पुस्तक से ) मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है, सत्य मेरा भगवान है.अहिंसा उसे पाने का साधन                                                             - महात्मा गांधी  व्यक्ति अपने विचारों से बना एक प्राणी है, वह जो सोचता है वही बन जाता है                                                                 - मोहनदास कर्मचन्द गांधी आप तब तक यह नही

शब्द:- मुंशी प्रेमचन्द

Munshi Premchand शब्द मुंशी प्रेमचन्द की पुस्तको से हिंदी और उर्दू साहित्य के मुंशी प्रेमचंद (धनपत राय प्रेमचंद) सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक हैं। मुंशी प्रेमचंद की पुस्तकों में से कुछ अनमोल वचन आपके लिए प्रस्तुत है। आदर्श आदर्श ही रहता है, हकीकत नही हो सकता धर्म की कमाई में बल होता है  आमदनी पर सबकी नजर रहती है , खर्च कोई नही देखता  जो लोग ओरतो की बैज्ज्दी कर सकते है, वे दया के योग्य नही  आदमी पर आ पडती है,तो आदमी आप संभल जाता है  मानव जीवन तू इतना ‍‌छणभंगुर है पर तेरी कल्पनाए कितनी दिर्ध्यु  संसार बुरो के लिए बुरा है औऱ अच्छों के लिए अच्छा है। ऐश्वर्य पाकर बुद्धि भी मंद हो जाती है  ईमान है तो सब कुछ है  मजहब  खिदमत का का नाम हे लूट और कत्ल का नही प्रेम बंधन ना हो पर धर्म तो बंधन है  धर्म की क्षती जिस अनुपात से होती हे उसी अनुपात से आडंबर की वृद्धि होती हे नमृता पत्थर को भी मोम कर देती हे आनंद जीवन अनंत प्रवाह मे हे मानवीय चरित्र इतना जटिल हे कि बुरे से बुरा आदमी देवता हो जाता हे ओर