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सितंबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
प्रिंस अलेमाएहु: एबिसिनिया का खोया हुआ वारिस अफ्रीका के मध्य में, राजकुमार अलेमायेहु के जीवन के माध्यम से राजशाही, त्रासदी और औपनिवेशिक साज़िश की एक कहानी सामने आती है। 1861 में जन्मे, वह सम्राट टेवोड्रोस द्वितीय और रानी टेरुनेश के पुत्र थे, ये दो शख्सियतें थीं जिनका जीवन एबिसिनिया की नियति के साथ जुड़ा हुआ था। यह युवा राजकुमार, जो अंततः इथियोपिया के लचीलेपन और प्रतिरोध का प्रतीक बन गया, को न केवल अपने पिता का नाम विरासत में मिला, बल्कि एक एकजुट और शक्तिशाली इथियोपिया के सपने भी विरासत में मिले। रॉयल्टी की जड़ें प्रिंस अलेमायेहु की वंशावली का पता एबिसिनिया के प्राचीन सम्राटों से लगाया जा सकता है, यह वंश इतिहास की समृद्ध मिट्टी में एक विशाल वृक्ष की गहरी जड़ों की तरह डूबा हुआ है। उनके पिता, सम्राट टेवोड्रोस द्वितीय, एक दूरदर्शी नेता थे, जिनकी तुलना अक्सर सवाना के शेर से की जाती थी, जो बाहरी खतरों से अपने राज्य की रक्षा करते थे। उनकी मां, रानी तेरुनेश, एक उज्ज्वल सूरज के समान थीं, जो अपने परिवार और प्रजा को गर्मी और आराम प्रदान करती थीं। अलेमायेहु का पालन-पोषण शाही परंपराओं और एबिसिनिया

Sant Kabir Das

संत कबीर दास के दोहे Indian mystic poet and saint Kabirdas, also known as Kabir, lived in the 15th century. He is the greatest poet of the Nirguna branch of the Gyanmargi subbranch of Bhakti literature in Hindi. His songs had a significant impact on the Bhakti movement in the Hindi-speaking world. His works have been incorporated into the Sikhs' Adi Granth. संत कबीर दास  के दोहे केस कहा बिगडिया, जे मुंडे सौ बार   मन को काहे न मूंडिये, जा में विशे विकार Kes kaha bigadiya , J munde saau baar  Maan ko kahe na mundiye , Ja mai vishay vikaar केस = बाल , मुंडे = सर के सारे बाल साफ करना  जा में विशे विकार= जिस में अच्छे विचार न हो  माटी कहे कुम्हार से तू क्या रौंदे मोय  एक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदूगी तोय  Maati khe kumhaar se tu kya ronde moye Ek din aisa aae ga main rondu gyi tohe  साईं इतना दीजिए जा मे कुटुम समाय मैं भी भूखा न रहूं साधु ना भूखा जाय Sai itna dijiye ja mai kutumb samaye Main bhi bookha na rahun sadhu na bukha jae बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजू

श्री राम स्तुति

Shri Ram Stuti श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं । नवकंज-लोचन,कंज-मुख,कर-कंज,पद कंजारुणं ॥ जय राम ... श्री राम जय राम... श्री राम जय राम कंदर्प अगणित अमित छवि,नवनिल नीरद सुंदरं । पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ॥ जय राम ... श्री राम जय राम... श्री राम जय राम भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्य-वंश निकंदनं । रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नंदनं ॥ जय राम ... श्री राम जय राम... श्री राम जय राम सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणं । आजानुभुज शर-चाप-धर,संग्राम-जित-खरदूषणं ॥ जय राम ... श्री राम जय राम... श्री राम जय राम इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं । मम ह्रदय कंज निवास करु कामादि खल-दल-गंजनं ॥ जय राम ... श्री राम जय राम... श्री राम जय राम

साई चालीसा

साई चालीसा पहले साई के चरणों में, अपना शीश नवाऊँ मैं । कैसे शिरडी आये साई, सारा हाल सुनाऊ मै ।। कौन है माता, पिता कौन है, यह ना किसी ने भी जाना । कहाँ जन्म साई ने धारा, प्रश्न पहेली बना रहा ।। कोई कहे अयोध्या के, ये रामचन्द्र भगवान है । कोई कहता साईबाबा, पवनपुत्र हनुमान है ।। कोई कहता मंगलमूरति, श्री गजानन है साई । कोई कहता गोकुलमोहन, देवकी नन्दन है साई ।। शंकर समझ भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते । कोई कह अवतार दत्त का, पूजा साई की करते ।। कुछ भी मानो उनका तुम, पर साई है सच्चे भगवान । बडे दयालु दीनबंधु, कितनों को दिया जीवन दान ।। कई बरस पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊंगा मै बात । किसी भाग्यशाली की, शिरडी में आई थी बारात ।। आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुन्दर । आया, आकर वहीं बस गया, पावन शिरडी किया नगर।। कई दिनों तक रहा भटकता, भिक्षा मांगी उसने दर-दर । और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर ।। जैसे-जैसे उमर बढी़, बढती ही वैसे गई शान । घर-घर होने लगी नगर में, साईबाबा का गुणगान ।। दिग् दिगन्त में लगा गूँजने, फिर तो साई जी का नाम । दीन-दुखी की रक्षा करना, यही

श्री शिरडी साई बाबा ग्यारह वचन

11 words of Shirdi Sai Baba I have full faith that the 11 words of Shirdi Sai Baba are as relevant today as they were then. Let us remember the words and make our life successful. जो शिर्डी मैं आएगा आपद दूर भगायेगा चढे समांधी की सीढ़ी पर पैर तले दुःख की पीढ़ी पर त्याग शरीर चला जाऊंगा भक्त हेतु दौड़ा आऊंगा मन में रखना दृढ़ विश्वास करे समाधी पुरी आस मुझे सदा जीवित ही जानो अनुभव करो सत्य पहचानो मेरी शरण आ खाली जाए हो तो कोई मुझे बताये जैसा भावः रहा जिस जन का वैसा रूप हुआ मेरे मन का भार तुम्हारा मुझ पर होगा वचन न मेरा झूठा होगा आ सहायता लो भरपूर जो माँगा वो नही है दूर मुझ में लीन वचन मन काया उस का ऋण न कभी चुकाया धन्य धन्य वह भक्त अनन्य मेरी शरण तज जिसे न अन्य

श्री शिव चालीसा

All types of life's problems disappear if the Shiv Chalisa is recited. Shiva Chalisa, Chalisa is so named in part because it has forty lines. The devotees very easily appease their Lord by reciting the well-known Shiv Chalisa in this manner. श्री शिव चालीसा जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान । कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥ जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के॥ अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन छार लगाये ॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देख नाग मुनि मोहे ॥ मैना मातु की ह्वै दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥ देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥ किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥ तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥

गुरु महिमा

गुरु महिमा गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वराः गुरुः साक्षात्परब्रम्ह तस्मै श्रीगुरवे नमः गुरु गोविन्द दोउ खड़े , काके लागूं पायं  बलिहारी गुरु आपने , जिन गोविन्द दिया दिखाय 

श्री हनुमान चालीसा

A Hindu devotional song honouring Hanuman is called the Hanuman Chalisa. Apart from the Ramcharitmanas, it is Tulsidas' best-known text and was written in the Awadhi dialect. Hanuman Chalisa श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।  बरनउं रघुबर विमल जसु, जो दायकु पल चारि ।। बुद्घिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार । बल बुद्घि विघा देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ।। जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । जय कपीस तिहुं लोग उजागर ।। रामदूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।। महावीर विक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ।। कंचन बरन विराज सुवेसा । कानन कुण्डल कुंचित केसा ।। हाथ वज्र औ ध्वजा विराजै । कांधे मूंज जनेऊ साजै ।। शंकर सुवन केसरी नन्दन । तेज प्रताप महा जगवन्दन ।। विघावान गुणी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ।। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ।। सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा । विकट रुप धरि लंक जरावा ।। भीम रुप धरि असुर संहारे । रामचन्द्रजी के काज संवारे ।। लाय संजीवन लखन जियाये । श्री रघुवीर हरषि उ

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Mahatma Gandhi Quotes In Hindi महात्मा गांधी के अनमोल विचार

महात्मा गांधी के अनमोल विचार  तभी बोलो जब वो मौन से बेहतर हो अपनी भूलो को स्वीकारना उस झाड़ू के समान हे जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले दे अधिक स्वछ कर देती हे ।                                                                                                                     - महात्मा गांधी  अपने सास - ससुर के घर या  अपनी बहन के घर मैं पानी तक न पीता था। वे छिप कर  पिलाने को तैयार होते पर जो काम खुले तौर से न किया जा सके, उसे छिपकर करने के लिए मेरा मन ही तैयार न होता था।                                                                                       - महात्मा गांधी  (सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा पुस्तक से ) मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है, सत्य मेरा भगवान है.अहिंसा उसे पाने का साधन                                                             - महात्मा गांधी  व्यक्ति अपने विचारों से बना एक प्राणी है, वह जो सोचता है वही बन जाता है                                                                 - मोहनदास कर्मचन्द गांधी आप तब तक यह नही

शब्द:- मुंशी प्रेमचन्द

Munshi Premchand शब्द मुंशी प्रेमचन्द की पुस्तको से हिंदी और उर्दू साहित्य के मुंशी प्रेमचंद (धनपत राय प्रेमचंद) सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक हैं। मुंशी प्रेमचंद की पुस्तकों में से कुछ अनमोल वचन आपके लिए प्रस्तुत है। आदर्श आदर्श ही रहता है, हकीकत नही हो सकता धर्म की कमाई में बल होता है  आमदनी पर सबकी नजर रहती है , खर्च कोई नही देखता  जो लोग ओरतो की बैज्ज्दी कर सकते है, वे दया के योग्य नही  आदमी पर आ पडती है,तो आदमी आप संभल जाता है  मानव जीवन तू इतना ‍‌छणभंगुर है पर तेरी कल्पनाए कितनी दिर्ध्यु  संसार बुरो के लिए बुरा है औऱ अच्छों के लिए अच्छा है। ऐश्वर्य पाकर बुद्धि भी मंद हो जाती है  ईमान है तो सब कुछ है  मजहब  खिदमत का का नाम हे लूट और कत्ल का नही प्रेम बंधन ना हो पर धर्म तो बंधन है  धर्म की क्षती जिस अनुपात से होती हे उसी अनुपात से आडंबर की वृद्धि होती हे नमृता पत्थर को भी मोम कर देती हे आनंद जीवन अनंत प्रवाह मे हे मानवीय चरित्र इतना जटिल हे कि बुरे से बुरा आदमी देवता हो जाता हे ओर