शब्द:- मुंशी प्रेमचन्द
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Munshi Premchand |
शब्द मुंशी प्रेमचन्द की पुस्तको से
हिंदी और उर्दू साहित्य के मुंशी प्रेमचंद (धनपत राय प्रेमचंद) सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक हैं। मुंशी प्रेमचंद की पुस्तकों में से कुछ अनमोल वचन आपके लिए प्रस्तुत है।
आदर्श आदर्श ही रहता है, हकीकत नही हो सकता
धर्म की कमाई में बल होता है
आमदनी पर सबकी नजर रहती है , खर्च कोई नही देखता
जो लोग ओरतो की बैज्ज्दी कर सकते है, वे दया के योग्य नही
आदमी पर आ पडती है,तो आदमी आप संभल जाता है
मानव जीवन तू इतना छणभंगुर है पर तेरी कल्पनाए कितनी दिर्ध्यु
संसार बुरो के लिए बुरा है औऱ अच्छों के लिए अच्छा है।
ऐश्वर्य पाकर बुद्धि भी मंद हो जाती है
ईमान है तो सब कुछ है
मजहब खिदमत का का नाम हे लूट और कत्ल का नही
प्रेम बंधन ना हो पर धर्म तो बंधन है
धर्म की क्षती जिस अनुपात से होती हे उसी अनुपात से आडंबर की वृद्धि होती हे
नमृता पत्थर को भी मोम कर देती हे
आनंद जीवन अनंत प्रवाह मे हे
मानवीय चरित्र इतना जटिल हे कि बुरे से बुरा आदमी देवता हो जाता हे ओर अच्छे से अच्छा आदमी पशु भी
रुप और गर्व मेँ चोली दामन का नाता हे
सोंदर्य जीवन सुधा हे मालूम नहीँ क्यूँ इसका असर इतना प्राण घातक होता हे
श्रद्धा देवताओं को भी खींच लाती हे
पारस को छूकर लोहा सोना हो जाता हे पारस लोहा नहीँ हो सकता
साधू संतो के सत्संग से बुरे भी अच्छे हो जाते है
वही तलवार जो केले को भी नह काट सकती , सान पर चढकर लोहे को काट देती है
साधू संतो के सत्संग से बुरे भी अच्छे हो जाते है
वही तलवार जो केले को भी नह काट सकती , सान पर चढकर लोहे को काट देती है